आहिस्ता आहिस्ता यू ही गुजरती जाती जिन्दगी
मुठी में रेत सी फिसलती जाती जिन्दगी
अपने निशां छोड़ती जाती ये जिन्दगी
कल भी थी और कल भी होगी ये जिन्दगी
बस ये लोग ना होंगे… पर होंगे उनके ये निशां और
होंगी कुछ यादें… थोड़ी सी... मुट्ठियों में सहेजी हुई।
पुनीत मेहता
1 comment:
punitji,aap behad achha likhte hain,aisa lagta mano jivan ki haqiqat......... ko aapne shbdo me piro diya ho..............
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