जिसे ख्वाबों में देखा वो कभी न मिला...
जिसका तसुवर भी न था वोही अपना निकला
जब भी नज़र उठाई कोई अपना ना मिला...
जब साया ही अपना न था तो औरों से क्या गिला.
जब भी गिला किया पलट के हमे शिकवा ही मिला
हमेशा मेरे.. अपने.. तुम्हारे.. पराये.. किया पर कुछ भी ना मिला.
पुनीत मेहता
अगस्त २६, २००९
Friday, August 28, 2009
Tuesday, August 25, 2009
हम आज़ाद हैं...
इन्कलाब जिंदाबाद... वन्दे मातरम्...
अंग्रेजों भारत छोडो... तोडी बच्चों वापस जाओ
भागो भागो.... फायर... हे राम....
चारों तरफ मची थी अफरा तफरी
चीख पुकार थी... लाशें थी बिखरी
यकायक सब शांत हो गया
एक खामोश सन्नाटा पसर गया
पुरानी यादों का सपना था जो अब सो गया
खुश हुआ कि ये सब तो बीत गया
देश तो कभी का आजाद हो गया
खुश हो रहा था कि शोर फिर शुरू हो गया
चीख पुकार की आवाजों से माहोल फिर उग्र हो गया
लगा कि सपना फिर से तो नहीं शुरू हो गया
और शांति... सुकून भरे जीवन का भ्रम टूट गया
फिर चलने लगी गोलियां... धमाके भी हो गए
लगे लोग चीखने चिल्लाने... लाशों में अपने खो गए
सब वोही तो आवाजें है सपने वाली
पर कहाँ है वो बुलंद नारे लगते लोग
वो जान बचा के भागते तोडी बच्चें
वो सब नहीं हैं क्योकि अब देश आज़ाद हैं
हम आज़ाद हैं...
अपने ही लोगों को खुद ही लूटने को
हम आज़ाद हैं...
अपनी लाशों को सफेदपोश गिद्धों नुचवाने को
हम आज़ाद हैं... ये आजादी हैं... शायद...?
पुनीत मेहता
९ अगस्त २००९
अंग्रेजों भारत छोडो... तोडी बच्चों वापस जाओ
भागो भागो.... फायर... हे राम....
चारों तरफ मची थी अफरा तफरी
चीख पुकार थी... लाशें थी बिखरी
यकायक सब शांत हो गया
एक खामोश सन्नाटा पसर गया
पुरानी यादों का सपना था जो अब सो गया
खुश हुआ कि ये सब तो बीत गया
देश तो कभी का आजाद हो गया
खुश हो रहा था कि शोर फिर शुरू हो गया
चीख पुकार की आवाजों से माहोल फिर उग्र हो गया
लगा कि सपना फिर से तो नहीं शुरू हो गया
और शांति... सुकून भरे जीवन का भ्रम टूट गया
फिर चलने लगी गोलियां... धमाके भी हो गए
लगे लोग चीखने चिल्लाने... लाशों में अपने खो गए
सब वोही तो आवाजें है सपने वाली
पर कहाँ है वो बुलंद नारे लगते लोग
वो जान बचा के भागते तोडी बच्चें
वो सब नहीं हैं क्योकि अब देश आज़ाद हैं
हम आज़ाद हैं...
अपने ही लोगों को खुद ही लूटने को
हम आज़ाद हैं...
अपनी लाशों को सफेदपोश गिद्धों नुचवाने को
हम आज़ाद हैं... ये आजादी हैं... शायद...?
पुनीत मेहता
९ अगस्त २००९
काश
एक तेज़ आंधी सी आती...
कभी ठंडी बयार बन जाती
एक उफनती नदी सी बहती...
कभी एक शांत समंदर बन जाती
एक चुलबुली चिड़िया सी चहकती...
कभी रंग बिरंगी तितली बन उड़ती
एक मासूम बच्ची सी बतियाती...
कभी अम्मा बन ज्ञान बघारती
शायद ऐसी होती है बहन प्यारी...
काश मेरी भी होती एक गुड़िया दुलारी
काश...
पुनीत मेहता
२८ जुलाई २००९
कभी ठंडी बयार बन जाती
एक उफनती नदी सी बहती...
कभी एक शांत समंदर बन जाती
एक चुलबुली चिड़िया सी चहकती...
कभी रंग बिरंगी तितली बन उड़ती
एक मासूम बच्ची सी बतियाती...
कभी अम्मा बन ज्ञान बघारती
शायद ऐसी होती है बहन प्यारी...
काश मेरी भी होती एक गुड़िया दुलारी
काश...
पुनीत मेहता
२८ जुलाई २००९
थोड़ा थोड़ा
आज फिर से रब को
अर्जी दे आया हूँ...
बहुत ज्यादा नहीं बस
थोड़ा थोड़ा ही मांग आया हूँ
थोड़ी सी हँसी... थोड़ी सी खुशी
थोड़ा सा आराम... थोड़ा सा सुकून
थोड़ी सी शांति... थोड़ी सी प्रार्थना
थोड़ा सा प्यार... थोड़ा सा इश्क
थोड़ी सी इंसानियत... थोड़ी सी रूहानियत
थोड़ा सा सूरज... थोड़ी सी चांदनी
थोड़ी सी साँसें... थोड़ी सी जिन्दगी
थोड़ा सा आसमां... थोड़ी सी जमीं
थोड़े से शब्द... थोड़ी सी आवाजें
थोड़ी सी रूह... थोड़ी सी आत्मा
कह आया...
सब नहीं दे सकते तो थोड़ा दे दें...
तुम्हारी अब भी चलती है सबको दिखा दे
पुनीत मेहता
३० जुलाई २००९
अर्जी दे आया हूँ...
बहुत ज्यादा नहीं बस
थोड़ा थोड़ा ही मांग आया हूँ
थोड़ी सी हँसी... थोड़ी सी खुशी
थोड़ा सा आराम... थोड़ा सा सुकून
थोड़ी सी शांति... थोड़ी सी प्रार्थना
थोड़ा सा प्यार... थोड़ा सा इश्क
थोड़ी सी इंसानियत... थोड़ी सी रूहानियत
थोड़ा सा सूरज... थोड़ी सी चांदनी
थोड़ी सी साँसें... थोड़ी सी जिन्दगी
थोड़ा सा आसमां... थोड़ी सी जमीं
थोड़े से शब्द... थोड़ी सी आवाजें
थोड़ी सी रूह... थोड़ी सी आत्मा
कह आया...
सब नहीं दे सकते तो थोड़ा दे दें...
तुम्हारी अब भी चलती है सबको दिखा दे
पुनीत मेहता
३० जुलाई २००९
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