इन्कलाब जिंदाबाद... वन्दे मातरम्...
अंग्रेजों भारत छोडो... तोडी बच्चों वापस जाओ
भागो भागो.... फायर... हे राम....
चारों तरफ मची थी अफरा तफरी
चीख पुकार थी... लाशें थी बिखरी
यकायक सब शांत हो गया
एक खामोश सन्नाटा पसर गया
पुरानी यादों का सपना था जो अब सो गया
खुश हुआ कि ये सब तो बीत गया
देश तो कभी का आजाद हो गया
खुश हो रहा था कि शोर फिर शुरू हो गया
चीख पुकार की आवाजों से माहोल फिर उग्र हो गया
लगा कि सपना फिर से तो नहीं शुरू हो गया
और शांति... सुकून भरे जीवन का भ्रम टूट गया
फिर चलने लगी गोलियां... धमाके भी हो गए
लगे लोग चीखने चिल्लाने... लाशों में अपने खो गए
सब वोही तो आवाजें है सपने वाली
पर कहाँ है वो बुलंद नारे लगते लोग
वो जान बचा के भागते तोडी बच्चें
वो सब नहीं हैं क्योकि अब देश आज़ाद हैं
हम आज़ाद हैं...
अपने ही लोगों को खुद ही लूटने को
हम आज़ाद हैं...
अपनी लाशों को सफेदपोश गिद्धों नुचवाने को
हम आज़ाद हैं... ये आजादी हैं... शायद...?
पुनीत मेहता
९ अगस्त २००९
Tuesday, August 25, 2009
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