... चक्की चल रही है और
निकल रहा है आटा
एकदम शुद्ध... एकदम ताज़ा...
ये है जिन्दगी का आटा
ले लो... ले लो... सब ले लो
बनाओं रोटियां गरम गरम...
जो हैं पोष्टिक और नरम नरम
ये हैं बहुत ही अनमोल
पर नहीं लूँगा इसका कोई मोल
सबको दूंगा... पर उन्हें न दूंगा
क्योंकि वो मिलायेंगे इसमें...
लालच का नमक... नफरत का पानी
और उतारेंगे राजनीति की रोटियाँ...
ज़हर भरी, कड़क और बेजानी
पर तुम ज़रूर आना... ले कर जाना
ये स्वादिष्ट और अनमोल आटा
क्योकि है ये...
एकदम शुद्ध... एकदम ताज़ा...
ये है जिन्दगी का आटा
पुनीत मेहता
५ सितम्बर २००९
Wednesday, October 14, 2009
आटा चक्की (पहला पीपा)
मैं एक चक्की वाला हूँ
रोज़ कुछ न कुछ पीसता रहता हूँ...
... कभी सपने और आशाएं
... कभी प्यार और विश्वास
... कभी विचार और भावनाएं
... कभी उम्मीद और हकीकत
... कभी शब्द और अभिवयक्ति
और निकलता हूँ...
सफ़ेद, शुद्ध, महीन जिन्दगी का आटा...
जीवन से भरी नरम नरम रोटियां बनाने को...
(क्रमशः)
रोज़ कुछ न कुछ पीसता रहता हूँ...
... कभी सपने और आशाएं
... कभी प्यार और विश्वास
... कभी विचार और भावनाएं
... कभी उम्मीद और हकीकत
... कभी शब्द और अभिवयक्ति
और निकलता हूँ...
सफ़ेद, शुद्ध, महीन जिन्दगी का आटा...
जीवन से भरी नरम नरम रोटियां बनाने को...
(क्रमशः)
Tuesday, October 13, 2009
चुम्बक
उस दिन अलमारी के उपर
स्कूल पुराने बस्ते में
एक चुम्बक मिल गया...
और मिलीं कुछ छोटी छोटी पेन्सिलें,
एक रबड़, कुछ छोटे गोल पत्थर,
कुछ कौडियाँ, कागज़ के कुछ पुर्जे,
कुछ सरकंडे, थोडी सी मिटटी और
उसकी एक छोटी सी... मटमैली सी तस्वीर
हमेशा सोचता था उन दिनों को...
क्यों नहीं भूलता उन दिनों को
ये तो शायद वो बस्ते में रखा
चुम्बक ही है जिसने...
रोके रखा है यादों को... जिन्दगी को
पुनीत मेहता
६ सितम्बर २००९
स्कूल पुराने बस्ते में
एक चुम्बक मिल गया...
और मिलीं कुछ छोटी छोटी पेन्सिलें,
एक रबड़, कुछ छोटे गोल पत्थर,
कुछ कौडियाँ, कागज़ के कुछ पुर्जे,
कुछ सरकंडे, थोडी सी मिटटी और
उसकी एक छोटी सी... मटमैली सी तस्वीर
हमेशा सोचता था उन दिनों को...
क्यों नहीं भूलता उन दिनों को
ये तो शायद वो बस्ते में रखा
चुम्बक ही है जिसने...
रोके रखा है यादों को... जिन्दगी को
पुनीत मेहता
६ सितम्बर २००९
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