Thursday, February 12, 2009

साथ

आज मैं नहीं हूँ...
तुम्हारे पास
पर तुम हो मेरे साथ
यही कही आसपास

हम नहीं हैं पास पास
पर रहेंगे हमेशा साथ
ये दूरी तो है बस
एक परदे की मानिंद
तुम देख नहीं पाते हो
पर मैं हूँ तुम्हारे ही साथ...
यहीं कहीं आसपास

एक इंतजार है...
फिर से मिलने का
तुम्हारे साथ रहने का
एक भरपूर जीवन जीने का
बस रखना ये विश्वास
मैं हूँ हमेशा तुम्हारे साथ…
यहीं कहीं आसपास

पुनीत मेहता

12 फ़रवरी 2009

Tuesday, February 3, 2009

ताना बाना

जीवन के ताने मे जिन्दगी का
बाना कम पड़ गया है और…
लोगों की इस भीड़ मे शहर का
आँचल तंग पड़ गया है.

आवाजों के इस शोरगुल में
शब्दों का अकाल पड़ गया है और...
ख्वाहिशों के इस जंगल में
वास्तविकता का वृक्ष सुख गया है.

ओ जुलाहे! तेरा करघा क्यों चुप है!
क्यों ये जीवन में जिन्दगी नही बुन रहा है!
ऐ जुलाहे! इस करघे को फिर चला दे...
इतनी जिन्दगी बुन कि सारे अकाल मिटा दे
... और फिर से चारों ओर
विचारों का बसंत बिखरा दे

पुनीत मेहता
फरवरी 3, 2009