(सन्दर्भ – धूप की किरणें – इश्वर / भगवान और दो किरणें प्रकाश की – दो बेटियाँ )
एक धूप का टुकडा अक्सर आता
उपर वाली खिड़की से झांकता
कभी मुस्कुराता… कभी खिलखिलाता…
बार बार आता, बस टुकुर टुकुर ताकता
और फिर से ओझल हो जाता
पर उस दिन वो आया... मुस्कुराया...
एक चकाचोंध करता प्रकाश जगमगाया
फिर अँधेरा छाया, कुछ भी समझ ना आया...
न वो धूप का टुकडा ही नज़र आया
अचानक कही फिर कुछ टिमटिमाया...
एक अलोकिक प्रकाश… दो किरणों का
चांदनी सी उजली किरणें...
हसती... मुस्कुराती... खिलखिलाती किरणें...
चोरासी पूरी चाँद रातों को रोशन करके...
... अब और भी ज्यादा चमकती किरणें
अब फिर झांकता है वो धूप का टुकड़ा...
अपनी दोनों किरणों के तेज भर्रे चेहरे में
अपना प्रतिबिम्ब छोड़ता... हर्षाता... याद दिलाता...
... अनगिनत पूरे चाद की रातों को रोशन करेंगी ये किरणें
... अपने तेज से दुनिया को सम्मोहित्त करेंगी ये किरणें
हसती, मुस्कुराती, खिलखिलाती किरणें... मेरी किरणें
पुनीत मेहता
22 दिसम्बर 2007
Sunday, April 19, 2009
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