Wednesday, September 3, 2008

जीवन ढूँढती जिन्दगी

तपती धुप मे छाँव ढूँढती जिन्दगी
सुहानी शाम तलाश करती जिन्दगी
अंधेरी रात में चांदनी ढूँढती जिन्दगी
सुबह की चमकती किरण को तलाशती जिन्दगी
आवारा सी गलियों में आशियाना ढूँढती जिन्दगी
प्रेमिका की तलाश में प्रेमी सी भटकती जिन्दगी
भीड़ में इंसानों की तलाश करती जिन्दगी
अपने वजूद की तलाश में भटकती जिन्दगी
चार दीवारों के मकान में घर ढूँढती जिन्दगी
तनहा घर में अपनों को ढूँढती जिन्दगी
थक कर के भी कभी न रूकती जिन्दगी
जीवन ढूँढती जिन्दगी

पुनीत मेहता

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