Monday, July 20, 2009

सुबह

सुनी गलियों ने फिर आवारा अँधेरे से पूछा...
हमसे मिलने सुबह कब आयेगी ?
तुम्हारी प्रियसी रात कब जायेगी ?
अँधेरा हँसा... रात खिलखिलाई...
सुनसान शोर के बढ़ने से गलियां चिल्लाई...
अँधेरी रात की आवाजें और गहरी होती गयी...
गलियाँ और भी तंग होती गयी...
पर याद है ना...
सुबह से पहले रातों का अँधेरा सबसे गहरा होता है.

पुनीत मेहता

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