Sunday, July 19, 2009

शहर मैं ....

मैं इस शहर मैं हूँ उस शहर में जहाँ ...
लोगो की भीड़ है पर ...
हर कोई अकेला है ...
कह्कहो का शोर है पर ...
इस शोर में खोखली गूँज है...
हर चेहरा मुस्कुराता है पर ...
फिर भी दर्द न छुप पाता है ...
हर कोना मकानों से ढका है पर ...
फिर भी घरो का अकाल है ...
हर चीज़ चमकदार है पर ...
चेहरों से चमक गायब है ...
हर कोई दौड़ रहा है पर ...
थका थका भी लग रहा है ...
सड़कों पर बहूत रोशनी है पर ....
बहुत सूनी, वीरान और लम्बी है ....
रफ्तार तेज और उम्मीद ऊंची है पर ...
फिर भी जीवन धीमा बूझा बूझा है ...
यहाँ रिश्तो की भीड़ है पर ....
फिर भी अपनों की तलाश है ...
पर यही तो वो शहर है ...
जहाँ मैं हूँ .... हम हैं .... हम सब हैं ।

पुनीत मेहता

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